मैं हल्की नींद में था,
वो चिल्लाया, ''रद्दी दे दो'
आंख खुल गयी
सोचा क्यूँ न इसको रद्दी दे दूं
दिल के कमरे की
बहुत रद्दी जमा हो गयी है
हर कोने में रद्दी पड़ी है
कहीं बुरे ख्यालों की रद्दी
कहीं अना की रद्दी
कहीं हसद की रद्दी
कहीं तकब्बुर की रद्दी
कहीं लालच की रद्दी
मैं आंखें मसलते हुए उठा
दरवाज़ा खोला तो देखा
उसे दूर रास्ते पे
ओझल होते हुए
मैंने दरवाज़ा बंद किया
फिर आ के सो गया।
-मोईन खान
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