Tuesday, January 25, 2022

पंडित जी

 आज मैं एशिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरी में बैठा सोच रहा हूँ कि एक छप्पर के नीचे खाद वाली खाली बोरी पे बैठ के पंडित जी का इंतज़ार किया करते थे। पंडित जी एक पुरानी साइकिल से पसीने में भीगे चले आते थे। उन्हें देखते ही मैं घर दौड़ जाता था। अम्मी से कहता पंडित जी आ गए हैं। अम्मी तुरंत चाय बनाने लगतीं और किसी छोटे भाई को दुकान पे भेजा जाता, पंडित जी की डबलरोटी (मठरी) लाने के लिए। पंडित जी आते ही पूछते, 'मोइन मियां चाय बन गयी?' हम अपना होमवर्क चेक करा के पंडित जी की चाय लाते। शायद वो चाय उतनी मीठी नही होती थी जितनी मीठी उनकी बोली होती थी। हमारे घर वालों के सामने हमारी तारीफों के पुल बांधने में तनिक भी न चूकते थे।आज इस शानदार लाइब्रेरी में बैठा उन्ही के बारे में ख्याल कर रहा था। कि वो आज भी उसी पुरानी साइकिल से पतली पगडंडियों पर बच्चों को पढ़ाने गांव गांव जाते होंगे। ना जाने कितने बच्चों के भविष्य का मार्ग प्रशस्त करते होंगे। हमारे जैसों के भविष्य की नींव डालने में पूरी जान लगाते होंगे।

-मोइन खान

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पंडित जी

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