सुंदर मजदूर
कितनी सुन्दर है वह मजदूर
जिससे समाज है कितना दूर
दिनभर ढोती है सिर पर ईंटें
उसका पति है चुनता जाता
उसका सांवला चेहरा काली ज़ुल्फ़ों में
जैसे काले नभ में है चाँद है दमकता
उसके सूखे होंठ और पिचके गाल
कह रहे हैं जीवन की करुण गाथा
उसकी धंसी हुईं आँखें
दर्शाती जीवन की गहराई
उसने अपने जीर्ण वस्त्र शरीर पर ऐसे हैं लपेटे
तभी तो दुनिया की नज़रों से बच पायी
कितने सुन्दर हैं उसके नगे पाँव
दिनभर पथरीली भूमि को कुचलते
जब सुनती पास लेटे बच्चे का रुदन
दौड़कर जाती
छाती से लिपटाकर पिलाती उसको दूध
कितनी सुन्दर है वह मजदूर
कितनी सुंदर है वह मजदूर
Self Composed
#International_Labour_Day
No comments:
Post a Comment